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बुधवार, 14 जनवरी 2015

मकर संक्रांति

संक्रांति पर्व दो दिन तक हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। 
१४ जनवरी को शाम ७:२६ बजे बजे सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा।
मकर संक्रांति का पुण्य स्नान १५ जनवरी को सुबह होगा।
संक्रांति का पुण्यकाल १४ जनवरी दोपहर १:२६ बजे आरंभ होकर १५ जनवरी को सुबह ११:२६ तक रहेगा।
ज्योतिषियों ने १५ जनवरी को सुबह संक्राति पुण्य काल के लिए श्रेष्ठ बताया है। निर्णय सिंधु.में भी संक्रांति पुण्य काल १२ घंटे तक श्रेष्ठ बताया गया है।
संक्रांति पुण्यकाल में दान-तीर्थ स्नान व नाम जप एवं
तिल-तेल से निर्मित वस्तुओं के साथ शनि से संबंधित
पदार्थो का दान अनंतगुणा फलदायक माना गया है। मकर संक्रांति के दूसरे दिन सुबह ११:२६ बजे तक विशेष पुण्यकाल होने के कारण मकर संक्रांति १४
जनवरी के अलावा १५ जनवरी को भी मनाई जाएगी।
सूर्य की उत्तरायण गति के साथ मलमास समाप्त होने पर पुन: गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत, विवाह आदि मांगलिक कार्य आरंभ हो जाएंगे।
मकर संक्रान्ति मे क्या करें-
सूर्य का मकर राशि मे प्रवेश १४जनववरी दोपहर में २ बजकर २० मिनट पर है साथ मे दिन मे ९ बजकर ७ मिनट से पंचक भी प्रारम्भ हो जाते हैं। 
अर्थात् प्रातः काल सूर्योदय के साथ ही पुण्य काल प्रारम्भ हो जायेगा जो अर्धरात्रि तक है।
१. मकर संक्रान्ति के पर्व का विधान अत्यन्त सरल है।
संक्रान्ति के दिन प्रातः तिल का तेल और उबटन लगाकर स्नान करना चाहिये।
२. तिल के तेल से मिश्रित जल से स्नान करना चाहिये।
३. तिल का उबटन लगाना स्वास्थ्य के लिये हितकर है।
४. तिल से होम करने से तमाम यज्ञों का पुण्य फल प्राप्त होगा।
५. जल मे तिल डालकर पानी पीना उत्तम है।
६. तिल से बने पदार्थो का खाना हितकर है तथा सुयोग्य पात्र को तिल का दान करना हितकर है।
क्या न करें-
१. अपने अभिभावक पिता का अनादर न करें।
२. भगवान भास्कर की पूजा अराधना के अवसर पर तिल-गुड़, चीनी के लड्डू दान करने की परम्परा है लेकिन सुयोग्य पात्र को ही दान करना हितकर है।
४. कम्बल तथा शुद्ध देशी घी का दान गरीब,बेसहारा लोगों को ही करना उत्तम होगा।
५. सुयोग्य पात्र को ही मकर संक्रान्ति के पावन अवसर पर दान करना चाहिये।
५. सूर्य देव की उपासना, अराधना तथा सूर्य देव से जुड़ी किसी भी वस्तु का दान प्रसन्नचित्त होकर तथा प्रसन्न मन से करना चाहिये। तथा भगवान भास्कर का आशीष आपको तथा आपके परिवार को प्राप्त होगा।
गोरखपुर से मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने की परंपरा की शुरूआत हुई।
यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है। 
खिचड़ी बनने की परंपरा को शुरू करने वाले बाबा गोरखनाथ थे।
बाबा गोरखनाथ को भगवान शिव का अंश भी माना जाता है। कथा है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। 
इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमज़ोर हो रहे थे।
इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी।
यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट था। 
इससे शरीर को तुरंत उर्जा भी मिलती थी। 
नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया।
बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा।
झटपट बनने वाली खिचड़ी से नाथयोगियों की भोजन की समस्या का समाधान हो गया और खिलजी के आतंक को दूर करने में वह सफल रहे। खिलजी से मुक्ति मिलने के कारण गोरखपुर में मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
गोरखपुर स्थिति बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी मेला आरंभ होता है। 
कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है।
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श्रीसूर्यदेवाय नम:

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